लाइफ अब सॉर्टेड सी है,
क्या पसंद है ये पता है..
क्या नापसंद है ये भी पता है..
खुद के साथ टाइम स्पेंड करना सबसे बड़ी लग्ज़री है..
और ज़िंदगी जो भी दौड़ थी अब उस में प्रतिस्पर्धा एक दम ख़त्म हो गई है ..
या यूँ कहें कि अब स्वीकार्यता आ गई है..
अब जितना भी वजन है, जो भी लुक्स हैं, जैसा भी हेयरस्टाइल है सबमें कंफ़रटेबल ही हैं..
कौन क्या कहेगा से ज़्यादा अब ये मैटर करता है कि हमको क्या पसंद है..
कैरियर की ट्रेजेक्ट्री का मोटा माटी आईडिया अब लग ही गया है..
और ये भी समझ आ गया है कि वर्स्ट केस सेनेरियो में भी कट ही जाएगी..
अब सर्वाइवल का सवाल नहीं है..खेल उस से आगे आ चुका है..
अब बस ये है कि पिताजी और माताजी को बिना कहे ही एहसास हो जाये कि हम उनके लिए हैं..
बच्चों को उतना मन मारना ना पड़े जितना मन हम सबको अपने बचपन में मारना पड़ा था..
जो घर परिवार और एक्सटेंडेड परिवार के प्रति कर्तव्य और समाजिक रीतिरिवाज हैं वो स्मूथली हो जायें..
बाक़ी अपना क्या है..
एक जींस आज भी सालों साल चल जाती है…
मेन बात यही है कि आउट नहीं हुए हैं…
xXx
ज़िंदगी अब सेटल सी होने लगी है
वो बेवजह की भाग-दौड़, बेमतलब की चिंताएं अब पीछे छूटने लगी हैं
अब गुस्सा नहीं आता, लड़ाई के बजाय समझाने का मन करता है
उकसाने के बजाय एक्सप्लेन करने लगे हैं—धीरे-धीरे शायद समझ आ गया है कि हर किसी को एक लेंथ की बॉल नहीं फेंकनी..
सब्जियां अब ज़्यादा अच्छी लगने लगी हैं..
हर स्वाद, हर रंग जैसे ज़िंदगी की सादगी और गहराई को समझाता हो..
नौकरी में अब तनाव कम है, काम में सुकून तलाशने लगे हैं..
दोस्ती जितनी भी बची है अब और गहरी और भी सच्ची होने लगी है..
और जिनसे तालमेल नहीं होता,
उन्हें धीरे-धीरे विदा करने का हुनर भी आ ही गया है..
जिनकी मदद कर सकते हैं, उनकी करते हैं
लेकिन अब अपनी सीमाएं भी पहचानने लगे हैं..
हर कोई खुश नहीं हो सकता, और हर काम आपके हिस्से का नहीं होता ये जिंदगी अब सिखा ही चुकी है..
जिम्मेदारी अब बोझ नहीं लगती, बल्कि खुद की दुनिया को बेहतर बनाने का एक हिस्सा बन गई है..
दुनियादारी में अब थोड़ा दिमाग और थोड़ा दिल लगाते हैं..
भावुकता और व्यवहारिकता का संतुलन बनाना सीख लिया है
हर बहस अब ज़रूरी नहीं लगती
खुद को संभालना ही ज़िंदगी का सबसे बड़ा काम समझ आने लगा है..
कुल मिलाकर फाइनल रिपोर्ट दें तो
ज़िंदगी आसान तो नहीं, पर जैसी भी है खूबसूरत जरूर लगने लगी है