लाइफ अब सॉर्टेड सी है,
क्या पसंद है ये पता है..
क्या नापसंद है ये भी पता है..
खुद के साथ टाइम स्पेंड करना सबसे बड़ी लग्ज़री है..
और ज़िंदगी जो भी दौड़ थी अब उस में प्रतिस्पर्धा एक दम ख़त्म हो गई है ..
या यूँ कहें कि अब स्वीकार्यता आ गई है..
अब जितना भी वजन है, जो भी लुक्स हैं, जैसा भी हेयरस्टाइल है सबमें कंफ़रटेबल ही हैं..
कौन क्या कहेगा से ज़्यादा अब ये मैटर करता है कि हमको क्या पसंद है..
कैरियर की ट्रेजेक्ट्री का मोटा माटी आईडिया अब लग ही गया है..
और ये भी समझ आ गया है कि वर्स्ट केस सेनेरियो में भी कट ही जाएगी..
अब सर्वाइवल का सवाल नहीं है..खेल उस से आगे आ चुका है..
अब बस ये है कि पिताजी और माताजी को बिना कहे ही एहसास हो जाये कि हम उनके लिए हैं..
बच्चों को उतना मन मारना ना पड़े जितना मन हम सबको अपने बचपन में मारना पड़ा था..
जो घर परिवार और एक्सटेंडेड परिवार के प्रति कर्तव्य और समाजिक रीतिरिवाज हैं वो स्मूथली हो जायें..
बाक़ी अपना क्या है..
एक जींस आज भी सालों साल चल जाती है…
मेन बात यही है कि आउट नहीं हुए हैं…