आज होलिका के अवसर पर जागे भाग गुलाल के
जिसने मृदु चुम्बन ले डाले हर गोरी के गाल के
आज रंगो तन-मन अन्तर-पट, आज रंगो धरती सारी
सागर का जल लेकर रंग दो, काश्मीर केसर-क्यारी
आज न हों मजहब के झगडे, हों न विवादित गुरुबानी
आज वही स्वर गूँजे, जिसमें रंग भरा हो रसखानी
रंग नही उपहार जानिये, ऋतुपति की ससुराल के
जिसने मृदु चुम्बन ले डाले हर गोरी के गाल के
आज स्वर्ग से इंद्रदेव ने रंग बिखेरा है इतना
गीता में श्रद्धा जितनी और प्यार तिरंगे से जितना
इसी रंग को मन में धारे फाँसी चढ़ कोई बोला
“देश-धर्म पर मर मिटने को रंगो बसन्ती फिर चोला”
आशा का स्वर्णिम रंग डालो, काले तन पर काल के
जिसने मृदु चुम्बन ले डाले हर गोरी के गाल के
कृष्ण मिले राधा से ज्यों ही रंग उडाती अलियों में
समय स्वयं भी ठहर गया तब गोकुल वाली गलियों में
वस्त्रों की सीमायें टूटीं, हाथों को आकाश मिला
गोरे तन को श्यामल तन से इक मादक विश्वास मिला
हर गंगा-यमुना से लिपटे लम्बे वृक्ष तमाल के
जिसने मृदु चुम्बन ले डाले हर गोरी के गाल के…