एक छोटे से शहर में एक आईएएस अफसर अपने परिवार सहित रहने के लिये आये , जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुये थे ?
ये अफसर हैरान-परेशान से रोज शाम को अपने घर के नज़दीक के एक पार्क में टहलते हुये अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते थे और किसी से भी बात नहीं करते थे ?
एक दिन वे एक बुज़ुर्ग के पास गुफ़्तगू के लिए बैठे और फिर प्रतिदिन उनके पास बैठने लगे , उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था – मैं इतना बड़ा आईएएस अफ़सर था? यहां तो मैं मजबूरी में आ गया हूं ? मुझे तो दिल्ली में बसना चाहिए था ? और बुजुर्ग शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे ।
सेवानिवृत्त अफसर की घमंड भरी बातों से परेशान होकर एक दिन बुजुर्ग ने उनसे पूछा कि आपने कभी फ्यूज बल्ब देखे हैं ? बल्ब के फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है कि बल्ब किस कम्पनी का बना हुआ था ? कितने वाट का था ? उससे कितनी रोशनी होती थी ?
बुजुर्ग ने आगे फ़िर कहा कि बल्ब के फ्यूज़ होने के बाद इनमें से कोई भी बात बिलकुल भी मायने नहीं रखती है ? लोग बल्ब को कबाड़ में डाल देते हैं ? मैं सही कह रहा हूं कि नहीं ?
फिर जब उन रिटायर्ड आईएएस अधिकारी महोदय ने सहमति में सिर हिलाया तो बुजुर्ग फिर बोले – रिटायरमेंट के बाद हम सबकी स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो जाती है ? हम कहां काम करते थे ? कितने बड़े पद पर थे ? हमारा क्या रुतबा था ? यह सब कोई मायने नहीं रखता ?
बुजुर्ग ने बताया कि मैं सोसाइटी में पिछले कई वर्षों से रहता हूं पर आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मैं दो बार सांसद रह चुका हूं ?
उन्होंने कहा कि वो जो सामने वर्मा जी बैठे हैं वे रेलवे के महाप्रबंधक थे ? और वे जो सामने से आ रहे हैं साहब वे सेना में ब्रिगेडियर थे ? और बैरवा जी इसरो में चीफ थे ? लेकिन हममें से किसी भी व्यक्ति ने ये बात किसी को नहीं बताई क्योंकि मैं जानता हूं कि सारे फ्यूज़ बल्ब फ्यूज होने के बाद एक जैसे ही हो जाते हैं ? चाहे वह जीरो वाट का हो या 50 वाट का या फिर 100 वाट का हो ? कोई रोशनी नहीं , तो कोई उपयोगिता नहीं ?
उन्होंने आगे कहा कि लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते हैं कि रिटायरमेंट के बाद भी उनसे अपने अच्छे दिन भुलाये नहीं भूलते। वे अपने घर के आगे नेम प्लेट लगाते हैं – रिटायर्ड आइएएस / रिटायर्ड आईपीएस / रिटायर्ड पीसीएस / रिटायर्ड जज आदि
बुजुर्ग ने कहा कि माना आप बड़े आफिसर थे? काबिल भी थे ? पर अब क्या ? अब यह बात मायने नहीं रखती है बल्कि मायने यह रखता है कि पद पर रहते समय आप इंसान कैसे थे ? आपने समाज के लोगों को कितनी तवज्जो दी ? समाज को क्या दिया ? कितने काम आये ? या फिर सिर्फ घमंड में ही ऐंठे रहे ।
बुजुर्ग आगे बोले कि अगर पद पर रहते हुये कभी घमंड आये तो बस याद कर लेना कि एक दिन आपको भी फ्यूज होना है ???
बुजुर्ग की बातों को सुनकर सेवानिवृत्त अधिकारी सन्न रह गए औऱ उनकी नजरें झुक गयीं ।