एक बार की बात है. एक राह चलते फकीर से एक लड़के ने पूछा– “बाबा! मैंने कई जगह पढ़ा है और कई लोगों से सुना भी है, कि ‘सच्चा प्यार बहुतो को नसीब नहीं होता’. मैं यह जानना चाहता हूं कि- लोग इस बात को क्यों बोलते है? लेखक! क्यों इस बात को अपनी किताबों में शब्दों के माध्यम से गढते हैं? इस बात में कितनी सच्चाई है? अगर आप मुझे बता सकते हैं, तो कृपया मेरा मार्गदर्शन करें.
उस वृद्ध फकीर ने लड़के की बातों को गौर से सुनकर गहरी सांस लेते हुए कहा– “बेटा! एक काम करो तुम्हारे घर के पास जो फूलों का बगीचा है, उस बगीचे से मुझे वहां का सबसे सुंदर फूल लाकर दो. मैं तुम्हारे हर सवाल का संतोषजनक उत्तर दूंगा”.
लड़के ने फकीर की शर्त मान ली और बगीचे से फूल लेने के लिए चला गया. कुछ समय के बाद वह लड़का खाली हाथ लौट कर वापस आ गया. उसके हाथ में किसी भी प्रकार का कोई फूल नहीं था. जब फकीर ने लड़के से पूछा कि– “फूल कहां है”?
तो लड़के ने कहा– “बाबा! जब बगीचे में पहुंचा था, तो मुझे शुरुआती पेड़ों पर बहुत ही सुंदर फूल मिल गया था. लेकिन मैं उससे भी अच्छे फूल की तलाश में पूरे बगीचे में भटकता रहा. जब मुझे कहीं भी उससे अच्छा फूल नहीं मिला, तब मैं उसी फूल को लेने के लिए वापस आया. लेकिन तब तक उस फूल को कोई और ले जा चुका था और मुझे खाली हाथ लौट कर वापस आना पड़ा”.
लड़के की पूरी बात सुनने के बाद, फकीर ने मुस्कुराते हुए कहा– “बेटा! ठीक ऐसा ही हमारी जिंदगी में भी होता है. कई लोग हर समय खुद के पास जो है उससे बेहतर खोजने में अपना समय व्यर्थ करते रहते हैं. लेकिन उनको यह पता नहीं होता कि जिस बेहतर प्यार या रिलेशनशिप को वह बाहर खोज रहे हैं, वह उनके पास पहले से है. जब तक उनको इस चीज का एहसास होता है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है और बेहतर खोजने के चक्कर में वो हर तरफ से वंचित रह जाते हैं”.
किसी ने सच ही कहा है कि– “सच्चा प्यार बहुतो को नसीब नहीं होता”. इसीलिए अपने पुराने संबंधों की कद्र करना सीखिए. यह बात सुनकर लड़के की आंखों में एक अलग सी चमक आ गई. शायद उसे दुनिया का सबसे अनमोल सबक मिल चुका था. शायद उसे रिश्तो को निभाना गया था. वह लड़का मुस्कुराते हुए अपने घर वापस चला गया और फकीर ने भी अपना रास्ता लिया.